ध्यान: (पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके स्तुति तथा मंत्र जप करें। )
नीलांजन समाभासं रविपुत्र यमाग्रजम्
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम
अर्थ: अंजन के समान नीले वर्ण के सम्मान चारों ओर दिखाई देने वाले सूर्य पुत्र और यम के ज्येष्ठ
भ्राता, माता छाया और पिता सूर्य के संयोग से उत्पन्न होने वाले उस शनि को प्रणाम करता
आवाहन:
ॐ भूर्भवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण तं शनैश्चरं आवाह्यामि अहम्।
अर्थ: सौराष्ट्र देश में उत्पन्न होने वाले कश्यप गोत्र, कृष्ण वर्ण वाले शनि का आवाहन करता हूं विनियोग (दायें हाथ में जल लें):
ॐ अस्य श्री शनैश्चर स्तोत्रस्य दशरथ ऋषि:, शनैश्चरो देवता, त्रिष्टुप् छन्दः शनैश्चर प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
(विनियोग शब्द के बाद जल अंगुलियों की ओर से भूमि पर छोड़ दें )
दशरथ उवाच
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकठं निभाय च l
नम: कालाग्नि रुपाय कृतान्ताय च वै नमः । 1 l
अर्थ : जिनके शरीर का रंग कृष्ण, नीला तथा नीले कंठ वाले यानि भगवान शंकर के समान है , उस शनि देव को नमस्कार है जगत के लिये कालाग्नि तथा कृतान्त रुप है, उस शनि को नमस्कार है
नमो निर्मास देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नम: विशाल नेत्राय शुष्कोदर भयाकृते । 2 l
अर्थ: जिनका शरीर मांस रहित यानि कंकाल रुप है (निर्मांस), बढ़ी दाढ़ी, मूंछ और जटा है।, उस शनि देव को नमस्कार है विशाल नेत्र वाले, पीठ में सटा हुआ पेट तथा भयानक आकार वाले शनि देव को नमस्कार है।
नमः पुष्कल गात्राय स्थूल रोम्णे च वै नमः ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमो अस्तु ते ।। 3 l l
अर्थ: जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है और जिनके रोंये बहुत मोटे हैं, लम्बे-चौड़े परन्तु सूखे शरीर वाले हैं जिनकी दाढ़ें काल स्वरूप हैं, उस शनि देव को नमस्कार है ।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने l 4 l
अर्थ: खोखले नेत्र वाले शनि देव को नमस्कार हे, जिनकी ओर देखना कठिन है, उस शनि देव को नमस्कार है । घोर, रौद्र, भीषण एवं विकराल शनि देव को नमस्कार है ।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुखाय नमोस्तुते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेअस्तु भास्करे अभयदाय च l 5 ।
अर्थ: सवों का भक्षण करने वाले को नमस्कार है । बलीमुख वाले शनि देव को नमस्कार होवे सूर्य पुत्र भास्कर पुत्र! अभय देने वाले देवता आपको नमस्कार है ।
अधोदृष्टे: नमस्तेअस्तु संवर्तक नमोअस्तुते l
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोअस्तुते । 6 l
अर्थ: नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनि देव आपको नमस्कार है। संवर्तक । आपको नमस्कार है । मन्दगति से चलने वाले आप शनिदेव को नमस्कार है। तलवार के समान वाले शनि देव को नमस्कार है।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधा आर्ताय अतृप्ताय च वै नमः ।। 7 । ।
अर्थ तपस्या से शरीर का दग्ध करने वाले, सदा योग में रत रहने वाले शनि देव को नमस्कार है।
भूख से आतुर, अतृप्त रहने वाले शनि देव को नमस्कार है।
ज्ञानचक्षुः नमस्तेअस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टों हरसि तत्क्षणात ।। 8 ।।
अर्थ: ज्ञान क्षेत्र! आपको नमस्कार है। कश्यप नन्दन सूर्य देव के पुत्र शनि देव जब आप संतुष्ट रहते हैं.
तो राज्य देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।
प्रसाद मे देव वर अर्हो अहं उपागतः ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ।। 9 ।।
अर्थ: हे महावली ग्रहराज शनि सॉरि मुझ पर प्रसन्न होइये, मैं वर पाने योग्य हूं और आपकी शरण में आया हूँ । इस प्रकार राजा दशरथ ने तब शनि की स्तुति की।
नोट: स्त्रोत्र के पाठ करने के बाद में ऊं प्रां प्रीं प्रौं सः शं शनैश्चराय नमः का 108 बार जप करना चाहिये।